आंखें बेतरतीब प्यासी हैं मुद्दतों से दीदार की,
पता नहीं कब नज़र फरमाओगे,
अब बस भी करो खफ़ा हो तो कहो तो सही,
अब कब तक इंतज़ार करवाओगे।।
बड़ा अच्छा तरीका खोज रखा है तुमने,
खुद को न अलग होने देते हो कभी न पास आते हो,
हम तो बस तुम्हारी आवाज़ में घुलने को बेताब हैं,
पर तुम न जाने कब खामोशी से पर्दा हटाओगे।।
हाल-ए-दिल एक तुम ही हो जो समझते हो,
ग़र तुम ही न पढ़ो इन ख़ामोश लफ़्ज़ों को,
तो वो वक्त मुक़र्रर कर दो हमें अब,
जब तुम हमारी रूह को दफ़नाओगे।।
ज़माने भर की खुशियां अधूरी हैं तुम्हारे बिना,
कभी तो समझने की कोशिश करो जज्बातों को,
अब हम तुम्हें सौदागर कहते हैं तो बताओ,
कब हमारे अहसासों की सही कीमत लगाओगे।।
✍✍Mohit Tiwari
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