बारिश,
कितना गहरा संबंध बनाती है,
धरती और बादलों के बीच,
दूरियां मायने नहीं रखतीं।।
विरह में तपती धरती,
अपनी सूखी आंखों से देखती है,
बादलों की ओर निरंतर,
प्रेम की प्रतीक्षा,
परिणीत होती है,
बूंदों के रूप में।।
बादलों को भी पता है,
प्रेम में थोड़ा गुस्सा होने जायज़ हैं,
गरम नहीं होती धरती,
तो होता बादलों का अस्तित्व,
अब नहीं बरसेंगे,
तो मिट जाएगा खुद का भी अस्तित्व,
और प्रेम की प्रतीक्षा की सीमा,
न शीतल होगी धरती,
और मिट जाएगा,
सभ्यता का अस्तित्व।।
✍️ Mohit