मैं कोई कोरी खुली किताब नही
जब चाहे जो चाहे लिख जाये
अपनी विचारो की कलम से
मेरे दिल को भेद जाये।
मै तो एक जीवन के रंगों से रंगी
वो पतंग हूँ जिसकी डोर मेरे हाथों में है
मै वो परिन्दा हूँ जो अरमानो की ऊंची उड़ाने
भी भरती हूँ , वक्त आने पर
जमी पर भी चलती हूँ
मै वो तूफा हूँ जो स्वाभिमान
के समंदर को समेटे
अपनी जिंदगी की राह खुद तय करती हूँ।
गनीमत हो जो मेरे ठहराव को
ठेस पहुचाये तो ये साहिल दिल का
समन्दर बन तूफा ले आये।
जज्बाती हूँ ज्यादा लेकिन
आशावादी भी हूँ
मै वो फूल हूँ जिसका कांटो से है
सीधा वास्ता
मैं अपनी खुशबू से रिश्तों को
महकाती हूँ।
वैसे तो मेरे नाम से झलकती है
कविता (एक मधुरता , गीत)
लेकिन कभी झूठ से लड़ने
स्वाभिमान का पहन कवच
कविता से काली भी बन जाती हूँ।
हा मै अपने आप मे संपूर्ण एक
अद्भुत पहेली हूँ
में खुद की सहेली हूँ
मै मै हूँ और मै ही रहना चाहती हूँ।
गर पूछे मुझसे कोई क्या बदलना
चाहती हो तुम खुदमे
तो मेरा जवाब होगा मैं मै हूँ
और मैं जैसी भी हूँ
मै ही रहना चाहती हूँ।
कविता जयेश पनोत
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